Voice of Soul
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दौड़ता हूँ अंतहीन राहो पर,
बेतरतीब – बेइन्तहा…
थक जाता हूँ दौड़कर जब,
बैठ जाता हूँ उन्ही राहो पर….
करके बंद आंखे,
फिर देखता हूँ वो सब…
जो खुली आंखो से,
देख न पाया कभी….
खामोशी के उस मंज़र मे,
बूंद गिरती ओंस की जब चेहरे पर…
छूता भी नहीं उसको,
वो बिखर न जाये कही….
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