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हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसमें कोर्इ संशय नहीं। सर्वसुलभ एवं आम जनप्रयाय द्वारा प्रयोग किये जाने के कारण हिन्दी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। साक्षर और निरक्षर दोनों ही हिन्दी का भरपूर प्रयोग करते हैं। कुछ पढ़े-लिखे व्यकित भले ही अंग्रेजी का गुणगान करते रहे हैं, किन्तु फिर भी वही लोग आम जनमानस से सम्पर्क करने हेतु मातृभाषा का ही प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी ग्लोबल भाषा होने के कारण विश्व में एक सम्पर्क भाषा भले ही है किन्तु अपने लोगों के मध्य सम्पर्क स्थापित करने के लिए हिन्दी आज भी सर्वोत्तम भाषा बनी हुर्इ है। समय के साथ-साथ इसमें भी कर्इ परिवर्तन आते रहे। हिन्दी को विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं ने अपना योगदान दिया जैसे उर्दू, अवधि, भोजपुरी, पंजाबी, फारसी और अंग्रेजी आदि के संयोग से यह और भी अधिक उन्नत और समृद्ध हुर्इ। हिन्दी का प्रयोग आज अनेकों क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया जा रहा है जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल, शिक्षा, खेल, फिल्म, रक्षा, प्रशासन आदि। इन सभी क्षेत्रों में भले ही कागजों पर अंगे्रजी अपना स्थान बनाये है किन्तु व्यवहारिक रूप से हिन्दी अपने स्थान पर ही कायम है।
किसी समय में हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तानी वाक्य वृहद रूप से प्रयोग किया जाता रहा और यदि वर्तमान परिृदश्य को देखें तो हिन्दी मात्र हिन्दुस्तान में ही नहीं अपितु अपनी सरहदों से बाहर भी अपनी बांहें फैलाये है। नेपाल, पाकिस्तान, बंगलादेश, सऊदी अरब, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में बहुल संख्या में हिन्दी का प्रयोग करते हैं क्योंकि पूरब के मेहनतकश लोग पशिचमी देशों में अपनी योग्यता के बल पर वहां टिक पाते हैं फिर भले ही वह हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, बंगाली या कोर्इ अन्य प्रान्तीय भाषा का प्रयोग करते हैं। जिन सभी की जड़े अंतत: संस्कृत, देवनागरी से जुड़ी ही मिलती है। पशिचमी देशों में अंगे्रजी सम्पर्क करने में महत्वपूर्ण स्थान रखती है फिर भी हिन्दी अपने स्थान पर अडिग है। अंग्रेजी की ही भांति हिन्दी भी सबसे अधिक सुविधाजनक भाषा है। जिसका अन्य वैशिवक भाषाओं की भांति पृथक स्थान है और एक बड़े जनवर्ग द्वारा बोली और समझी जाने वाली एक आम भाषा है।
हिन्दी बाजार की भाषा है यह सत्य है। मातृ भाषा होने के कारण हिन्दी अत्यंत ही सरल भाषा भी है इसलिए हमें अपनी मातृ भाषा को लेकर कभी हीन-भावना से ग्रसित नहीं होना चाहिए अपितु अपनी मातृभाषा द्वारा अपने विचारों का सरलतापूर्वक आदान-प्रदान कर इस पर हमें गौरवानिवत होना चाहिए कि हमारी एक अपनी पृथक भाषा और पहचान हिन्दी के रूप में हमें प्राप्त हुर्इ जो हमें किसी उधार में न मिलकर, अपने प्राचीन ऋषियों-मुनियों द्वारा विरासत स्वरूप प्राप्त हुर्इ। जिसे हमें किसी सुपुत्र की भांति उसके विकास में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान करना चाहिए।
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