आये थे हरि भजन को लोटन लगे कपास, यह उकित वर्तमान परिदृश्य में सार्थक होती दिखती है। व्यकित करने कुछ जाता है और करने कुछ ही लगता है। चहुंदिशा में भ्रम ने अपना ऐसा मायाजाल बिछाया हुआ है जिसे तोड़ पाना हर इक के बस की बात नहीं। जिस तरह की घटनाएं इन दिनों घटी हैं उससे तो यही ज्ञात होता है कि श्रृद्धा, धर्म, राजनीति, स्वार्थ, अपराध और धर्मान्धता अपने चरमोत्कर्ष पर है। धर्मस्थलो की आड़ में होने वाले काले कारनामें तो जगजाहिर है, जो आज के समय में एक आम सी बात हो गयी है। जब कभी कुछ बड़ी घटना होती है और तब कहीं मीडिया भी उनके विरोध में बोलने के साहस करती है। संत आसाराम बापू से संबंधित विवादों की ही यदि चर्चा करें तो सीधे-सीधे यही समझ में आता है कि यदि कोर्इ किसी भी प्रकार से कोर्इ गलत कार्य करता है तो उसके पीछे कहीं न कहीं हम भी उत्तरदायी हैं जो उन्हें अपनी अंधश्रृद्धा द्वारा उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। गलत को गलत और सही को सही कहना प्रत्येक व्यकित का उत्तरदायित्व है और इस दायित्व का सबसे बड़ा लाभ समाज को तो है ही बलिक उक्त व्यकित को व्यकितगत रूप से कहीं अधिक है। समाज में धार्मिक श्रृद्धा द्वारा लोगों को मूर्ख बनाकर उन्हें मानसिक रूप से गुलाम बनाने के कार्य आज से नहीं बलिक तब से ही चल रहा है जब से व्यकित समाजिक हुआ। जैसे-जैसे वह समाजिक होता गया, स्वार्थी धर्मगुरू उन्हें और अधिक मानसिक रूप से पंगु बनाते चले गये। जिस कारण मनुष्य ने धर्म के नाम पर ऐसे-ऐसे कार्यों को अंजाम दिया जिसे कभी पशुओं ने भी नहीं किये। पशु भी अपनी ही जाति के व अन्य पशुओं को भी बिना किसी बड़े कारण के नहीं मारते। जबकि बुद्धिमान मनुष्य तो पशुओं को पीछे छोड़ उन सभी मूर्खतापूर्ण कार्यों को धर्म का आवरण ओढ़ा करता ही गया और आत्मवंचना स्वरूप स्वयं को समस्त जीव-जगत में श्रेष्ठ प्राणी भी घोषित कर दिया। किसी शायर ने क्या खूब कहा है – Þआदमी आदमी को डस रिया है, आदमी आदमी को डस रिया है, ये सब देख काला नाग हंस रिया है। धार्मिक उन्माद और धर्मान्धता की बीमारी से ग्रसित मात्र अनपढ़ ही नहीं अपितु पढ़े-लिखे व्यकित कहीं अधिक हैं। धर्मान्धता की मूर्खताओं की सारी सीमाओं को तोड़ देते हैं और सबसे अधिक यही लोग इंसानियत का लहू बहाने में पीछे नहीं हटते। कारण स्पष्ट है – इसमें से अधिकतर किसी का रिश्ता धर्म, श्रृद्धा और ज्ञान से न होकर स्वार्थ, अपराध और राजनीति से कहीं अधिक होता है। स्वार्थ, अपराध और राजनीति से जुड़कर जो धर्म कभी मानवता की सेवा और उत्थान के बना था वही ऐसे संगठन के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिसमें उन्मादी किस्म के लोगों को अधिक श्रेय मिलने लगता है। राजनीति और स्वार्थ की आंधी के बीच धर्म का दिये का तब कोर्इ औचित्य ही नहीं रहता जब उसे चलाने वाले और उनके अनुयायी सभी अंधे हो कुछ भी देख नहीं पाते। आसाराम बापू गलत हैं या सहीं, इस बारे में कुछ भी ठोस राय कायम करना सही न होगा। सही और गलत का फैसला हमें किसी भी प्रकार की सुनी-सुनार्इ बातों के आधार पर नहीं करना चाहिए अपितु सम्पूर्ण परिदृश्य को दृषिटगत रखते हुए करना चाहिए। बेशक आश्रम में बहुत से विवादास्पद कृत्यों की घटनायें मीडिया द्वारा सबके समक्ष आयी हैं किन्तु फिर भी यह कहना उचित न होगा कि धार्मिक संस्थानों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रकार के धार्मिक संगठनों की कभी-कभार कुछ घटनायें सबके समक्ष आ जाती हैं किन्तु फिर भी इन संगठनों ने समाज के उत्थान के लिए बहुत बड़ा योगदान भी दिया है। जो मीडिया को उजागर करना चाहिए, फिर भी इन सबके साथ इन संगठनों को चलाने वाले गुरूओं और उसके मुख्य चेलों को र्इश्वर का दर्जा देना सबसे बड़ी मूर्खता होगी। इन लोगों को भगवान की गददी से उतारकर मनुष्य के सेवक के रूप में प्रस्तुत होना होगा या फिर सम्पूर्ण जनता को ही इस प्रकार की लहर चलानी होगी जिसमें मनुष्य को मनुष्य मान उसे मनुष्य बनाना होगा……..
ओशो रजनीश ने (भारत: समस्याएँ व् समाधान) में कहा है:- अच्छे कर्म करेगे तो धनपति हो जाओगे, बुरे कर्म करोगे तो गरीव हो जाओगे! सुरक्षा समाज की बन गई और एक करोड़ से भी जयादा साधु ये सुरक्षा बनाकर दूसरो को बेवकूफ बना रहे है इसलिए मैं कहता हूँ कि हमारे समाज की बदहाली का, हमारे देश की गरीबी का, और गरीब सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है! अमीर आदमी को भी ख़याल ही नहीं हो पाता कि अमीरी भी सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है! और मजे की बात यह है कि गरीब भी दुखी है! और दोनों का दुख सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है! मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ—जब तक समाज गरीब है वहां तक कोई अमीर आदमी सुखी नहीं हो पाता! यह असंभव है कि पूरा गांव बीमारी से भरा हो, केंसर और कोड गांवभर में फैली हो और एक आदमी अपने बंगले में परकोटा उठाकर बैठ सके! यह असंभव है! और बचेगा तो, न रात सो सकेगा, न दिन सो सकेगा! रातभर पहरेदार लगाकर रखने पड़ेंगे, कि कोई घुस न जाये, इतनी चिंता में रहेगा सुरक्षा की, कि सुरक्षा ख़त्म हो जायेगी! सुरक्षा में इतना चिंतित हो जायेगा कि कैसे सुरक्षा करूँ? अगर आप के पास वह पैसा है तो आप आसानी से पैसे को नहीं बचा सकेंगे! चारो तरफ इंतजाम करना पड़ेगा कि उस इंतजाम में मैं घिर जाऊं और कैदी हो जाऊं! और जिंदगी एक मुसीबत में है गरीबी की वजह से! दोनों मानते है कि पिछले जन्म का मामला आपको कैसे पता चला? कहाँ किताब में लिखा है! —-
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