- 69 Posts
- 107 Comments
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और इसका सम्मान किया जाना ही चाहिए किन्तु वर्तमान में हिन्दी की सिथति कुछ और ही है। जिस भाषा पर देश के प्रत्येक नागरिक को गर्व होना चाहिए, उसका प्रयोग करने में ही उन्हें शर्म महसूस हो रही है, यह वाकई बहुत ही शोचनीय विषय है। यदि व्यवहारिक रूप से देखा जाये तो हिन्दी भाषा गर्व की नहीं, कहना कोई अतिष्योकित न होगा क्योंकि हिन्दी आज मात्र गरीबों और अनपढ़ों की भाषा बनकर ही रह गयी है।
भारत में वर्तमान आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो अधिकतर कम-पढ़े लिखे, अनपढ़, ग्रामीण एवं अन्य छोटे कस्बों में रहने वाले लोग ही हिन्दी का प्रयोग करते मिलते हैं। महानगरों में उच्च शिक्षित वर्ग जो अंग्रेजी का सबसे अधिक प्रयोग करते हैं, जिन्हें हिन्दी में बोलना, लिखना, पढ़ना अत्यंत कठिन जान पड़ता है। जिसका कारण स्पष्ट है – भारत में अंग्रेजी शिक्षा का बढ़ता प्रभाव और रोजगार में अंगे्रजी शिक्षा की अधिक मांग। छोटे एवं बड़े नगरों में विदेशी कम्पनियों की भरमार, हिन्दी की सिथति पर अत्यन्त ही गहन प्रभाव रखती हैं।
अंग्रेजी रोजगार प्रापित हेतु अत्यन्त ही सरल साधन बन चुकी है जबकि इसके विपरित ऐसे हिन्दी भाषी जिन्हें अंग्रेजी का अधिक ज्ञान नहीं, फिर चाहे उनके पास कोई भी डिग्री, डिप्लोमा या अन्य कोई प्रमाण पत्र हो। वह अपने ही साथ के अन्य अंग्रेजी जानने वाले अभ्यर्थियों से बहुत पीछे छूट जाते हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये तो बाजार की भाषा हिन्दी को न कहकर अंग्रेजी को कहना उचित होगा। हिन्दी बाजार की भाषा नहीं अपितु व्यवहार की भाषा है। व्यवहारिक रूप से बहुत बड़ी संख्या में मध्यम वर्गीय लोग जो बाजार में अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं परन्तु फिर भी व्यवहार में आपसी संवाद अधिकतर हिन्दी में ही करते है।
हिन्दी की दयनीय स्थिति के पीछे अंतर्राश्ट्रीयकरण, बाजारवाद और प्रतिस्पर्था बहुत ही बड़ा कारण है। हिन्दी को उचित स्थिति में लाने हेतु भारत में नीजि संस्थानों को भी अधिक से अधिक हिन्दी को प्रयोग में लाना चाहिए। जहां अंग्रेजी का प्रयोग आवशयक हो, वही अंग्रेजी का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके अलावा रोजगार के अवसरों में कम अंग्रेजी जानने वालों को जो अन्य कार्यों में अधिक कुशल हैं, प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि कार्यकुशलता हिन्दी या अंग्रेजी पर न निर्भर होकर, व्यकित के ज्ञान पर अधिक निर्भर करता है।
Read Comments