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मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के पीछे क्या कारण है और आखिर क्यों जाति, धर्म का बहाना बनाकर आदमी – आदमी की जान लेने को उतारू हो जाता है, आखिर इस प्रकार की घटनाओं के पीछे वास्तविक कारण क्या हैं? क्या इस प्रकार की घटनायें राजनीति से प्रेरित होती है या इनके पीछे कोई और कारण भी है। आज इस विषय पर हम कुछ विचार करेंगे।
सर्वप्रथम हम बात का प्रारम्भ मुजफ्फरनगर की घटना से करते हैं। कर्इ लोगों से इस विषय पर मेरी वार्ता हुर्इ तो किसी का कहना है कि यह घटना राजनीतिज्ञों की करतूत है क्योंकि निकट भविष्य में चुनाव का आना और अपने-अपने वोट बैंकों की लिए राजनीतिज्ञ इस प्रकार की गंदी राजनीति अवश्य करते हैं। यदि देखा जाये तो इसमें कुछ भी गलत नहीं। विगत घटनाओं पर दृष्टि डालें तो गोधरा कांड, रामजन्म भूमि-बाबरी मसिजद का विवाद और इस प्रकार के अनेकों मुददे ऐसे हैं जो चुनाव आने के कुछ समय पहले ही न जाने किस पिटारे से निकल आते हैं जिसके विषय में कितने ही समय से पूरा मामला ठंडा होता है। फिर प्रारम्भ होता है छोटी-छोटी घटनाओं का, जो आगे चलकर बड़े-बड़े विवादों का कारण बनती है। उन घटनाओं के विषय में यदि कोर्इ सुने और समझे तो कोर्इ भी सामान्य बुद्धि वाला व्यकित भी बड़ी आसानी से उसका हल निकाल सकता है। जैसे मुजफ्फरनगर की घटना ही एक युवती के छेड़छाड़ से प्रारम्भ होकर दंगे में कैसे बदल गई? यदि सही समय पर सही प्रकार से उक्त युवक के साथ कानूनी कार्यवाही की जाती तो अवश्य ही इतने नरसंहार का कोई कारण ही नहीं था। जब चुनाव समीप हों और छोटी से छोटी अपराधिक घटनायें भी हो जायें तब पुलिस भी अपने कार्यशैली और फर्ज निभाने हेतु एकदम तैनात रहती है लेकिन उक्त अपराधी को पकड़ कर उस कार्यवाही करने के फर्ज पर नहीं अपितु सर्वप्रथम यदि वह कांस्टेबल है तो वह पहले अपने अधिकारी से अनुमति लेने का फर्ज पहले निभाता है कि उक्त अपराधी को पकड़ कर उस पर कार्यवाही की जाये या नहीं क्योंकि अपराधी किसी न किसी राजनैतिक संस्था से संबंध रखता है, इस बात का पता कांस्टेबल घटना होने से पहले ही लगा लेता है। उसके पश्चात इंस्पेक्टर अपने अधिकारी कमिश्नर से अनुमति लेता है और कमिश्नर उन सभी को अनुमति देने से पहले उक्त नेता से अनुमति लेने के फर्ज से पीछे नहीं हटते जिसकी पार्टी से अपराधी संबंधित है। इस लंबी अनुमतियों के पश्चात निष्कर्ष यह निकलता है, फिलहाल अपराधी को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाये। इस प्रकार के क्रियाकलाप ऐसी घटनाओं को बहुत अधिक बढ़ावा देने में सहायक हैं।
दूसरे पक्ष यदि इस घटना पर दृष्टि डालें तो इस प्रकार के दंगे जिनमें जातिवाद, क्षेत्रवाद, नस्लवाद कारण रहे हैं। उनके पीछे समाज में व्याप्त जातियों, धर्मों और विभिन्न समुदायों के बीच आपसी तालमेल मधुर न होने के कारण हैं। ऊपर से बेशक सभी यह नारा लगाते मिलते हैं – हिन्दू, मुसिलम, सिख, इसाई आपस में हैं भाई-भाई लेकिन भीतर ही भीतर कभी दबे और कभी खुले शब्दों में सबकुछ भूलकर अपनी-अपनी वास्तविकता में आ ही जाते हैं, जो वास्तव में हम हैं। तो फिर सभी जातियों, समुदायों और धर्मों में किस प्रकार मधुरता लायी जा सकती है? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना गधे के सिर पर सींग खोजना। घोड़ा घास से दोस्ती करे, तो फिर खाये क्या। यह बात इन सभी समुदायों पर एकदम सही बैठती है। सबके स्वार्थ एक से होने के कारण और स्वयं को सबसे उच्च और भिन्न रखने की भावना, सब पर शासन करने की तीव्र आकांक्षा ही इन घटनाओं का मूल कारण है। वर्तमान समय में ही हिन्दुओं में आज अनेकों उपजातियां निकल आई हैं। कोई ब्राहमण है, कोई राजपूत, कोई हरिजन है, कोई बनिया, कोई जाट है तो कोई ठाकुर इस प्रकार की सैकड़ों उपजातियों ने अपने जहरीली शाखायें फैला रखी हैं जिसके फल समाज को समय-समय पर दंगों के रूप में मिलते रहते हैं। आज कोई भी हिन्दू मात्र हिन्दू होने में प्रसन्न नहीं है और कोई मुसलमान मात्र मुसलमान होकर रहना पसन्द नहीं करता। मुसिलम समुदाय भी जातिवाद के दंश से नहीं बचा, सययद, कुरैशी, पठान, खान और अनेकों ऐसी उपजातियां हैं जो एक दूसरे को ऊंच-नीच की भावना से व्यवहार किया करते हैं। जब एक ही जाति और धर्म में इतने वैचारिक मतभेद और विवाद उपसिथत हैं तो किसी और जाति के विषय में और क्या ही कहना।
धर्म कभी बुरे नहीं हुए, बुरे हुए तो बस इंसान। सभी धर्मों ने मानव को मानवता का ही पाठ पढ़ाया परन्तु इंसान ने अपनी बुद्धिमता के कारण उस इंसानियत के पाठ को दोहराते-दोहराते, इंसानियत का ही खून बहाया। फिर इसके पीछे धर्म कैसे बुरे हुए? बुरा तो वह इंसान हुआ जो अपने स्वार्थ और अहंकारवश धर्म की सिखाइ सभी बातों को किसी तोते की तरह बिना किसी अनुभव एवं विचार के बस रटता ही रहा और किये वही सब कार्य जो उसके स्वार्थों और अहंकार को पोषण करते रहे। अपनी बुद्धि की कुटिलता से मनुष्य ने अपने इन सभी कृत्यों का धर्म के बड़े ही सुन्दर वस्त्र पहनायें और उनकी पूजा भी की। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण आज इस्लामिक आतंकवाद है, जिसके कहर से आज पूर्ण विश्व त्रस्त है।
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