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नाम शब्द का गुरू ग्रन्थ साहिब में निर्गुण ब्रहम के लिए प्रयोग किया है। जिसमें स्पष्ट रूप से नाम को सभी धर्मों, सृष्टियो, ज्ञान, चेतना, आकाश-तारे, सभी बल और पदार्थों का निर्माता बताया गया है। यह नाम या ईश्वर समस्त सृष्टि में व्याप्त है, जो बेदाग है, अथाह है एवं हम सबके ही भीतर है जिसे जानने के लिए गुरू द्वारा ईश्वर की कृपा से स्वयं के भीतर ही जाना जा सकता है। ‘नाम सिमरन अर्थात ईश स्मरण हमें हमारे आंतरिक मण्डलों को जागृत कर सत्य का ज्ञान करवाता है, जिसके फलस्वरूप ज्ञान से प्रेम, प्रेम से भक्ति और भक्ति से मुक्ति की सुगन्ध साधक के चहुंओर बिखरने लगती है। जिसकी सुगन्ध न केवल साधक को प्राप्त होती है अपितु उसके आसपास की हवा भी स्वयंमेव ही बदलने लगती है। उनकी ऊर्जा से मनुष्य ही नहीं अपितु जीव-जन्तु, वृक्ष-वायु और प्रकृति भी जीवन्त हो उठती है। जैसे श्रीकृष्ण जहां-जहां भी जाते थे, उनके आसपास छोटे से छोटा प्राणी भी उनके प्रेम में स्वयंमेव ही खिंचा चला आता था। कृष्ण की मुरली की मधुर तान से गोपियां-ग्वाले तो आकृष्ट होते ही थे अपितु गाय-बछड़े, पक्षी भी मंत्रमुग्ध हो मुरली के स्वरों की गहराइयो में छिपे मौन में कहीं डूब जाते थे, जिसे प्राप्त करने के लिए बड़े-बड़े ऋषि-मुनि एवं तपस्वियों को अनेकों वर्षों साधनारत रहना पड़ता था। जो स्वर श्रीकृष्ण की निष्काम भाव से पूर्ण उनकी मुरली से निकलते थे, जो सीधे श्रोता के हदय को भेदती हुई उन्हें भी उसी भाव में ले जाती थी जिस भाव में स्वयं श्रीकृष्ण विधमान थे। यह है ईश की महिमा।
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