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करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा
कोटि बिघन लाथे प्रभ सरणा प्रगटे भले संजोगा
प्रभ बाणी सबदु सुभाखिआ
गावहु सुणहु पड़हु नित भाई गुर पूरै तू राखिआ
रहाउ
साचा साहिबु अमिति वडाई भगति वछल दइआला
संता की पैज रखदा आइआ आदि बिरदु प्रतिपाला
हरि अंमृत नामु भोजनु नित भंचहु सरब वेला मुखि पावहु
जरा मरा तापु सभु नाठा गुण गोबिंद नित गावहु
सुणी अरदासि सुआमी मेरै सरब कला बणि आई
प्रगट भई सगले जुग अंतरि
गुर नानक की वडिआई
प्रातः काल स्नान करके और प्रभु का नाम- स्मरण करके मन, तन निरोग हो जाते हैं क्योंकि प्रभु की शरण लेकर करोड़ो रूकावटं दूर हो जाती है। हे भाई! गुरू ने अपना सुन्दर उपदेश दिया है, जो प्रभु की गुणस्तुति की वाणी है, इसे सदा गाते रहो, सुनते रहो, सुनते रहो और पढ़ते रहो,(ऐसा करने पर यह निश्चित है कि अनेक मुसीबतों से) पूर्णगुरू ने तुझे बचा लिया है रहाउ ऐ भाई! मालिक – प्रभु सत्यस्वरूप् है, उसका बडप्पन मापा नहीं जा सकता, वह भक्ति से प्रेम करनेवाला है, दया का स्त्रोत्र है, सन्तों की प्रतिष्ठा की रक्षा करता आया है और अपना यह विरद वह अदिमकाल से ही निभाता आ रहा है। हे भाई! परमात्मा का नाम आत्मिक जीवन देनेवाला है। यह आत्मिक खुराक सदा खाते रहो, प्रतिपल अपने मुह में डालते रहो। हे भाई! हमेशा गोविन्द का गुणगान करते रहो, न बुढापा आएगा, न मृत्यु आएगी और प्रत्येक दुख- क्लेश दूर हो जाएगा। हे भाई! ( नाम स्मरण करनेवाले) मनुष्य की प्रार्थना मेरे स्वामी ने सुन ली, (अब प्रभु-कृपा होने पर) उसके भीतर पूर्ण शक्ति पैदा हो जाती है। हे नानक! गुरू की यह महानता तमाम युगों में उजागर रहती है।
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