Menu
blogid : 15302 postid : 808460

गुरबानी

Voice of Soul
Voice of Soul
  • 69 Posts
  • 107 Comments

करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा
कोटि बिघन लाथे प्रभ सरणा प्रगटे भले संजोगा
प्रभ बाणी सबदु सुभाखिआ
गावहु सुणहु पड़हु नित भाई गुर पूरै तू राखिआ
रहाउ
साचा साहिबु अमिति वडाई भगति वछल दइआला
संता की पैज रखदा आइआ आदि बिरदु प्रतिपाला
हरि अंमृत नामु भोजनु नित भंचहु सरब वेला मुखि पावहु
जरा मरा तापु सभु नाठा गुण गोबिंद नित गावहु
सुणी अरदासि सुआमी मेरै सरब कला बणि आई
प्रगट भई सगले जुग अंतरि
गुर नानक की वडिआई
प्रातः काल स्नान करके और प्रभु का नाम- स्मरण करके मन, तन निरोग हो जाते हैं क्योंकि प्रभु की शरण लेकर करोड़ो रूकावटं दूर हो जाती है। हे भाई! गुरू ने अपना सुन्दर उपदेश दिया है, जो प्रभु की गुणस्तुति की वाणी है, इसे सदा गाते रहो, सुनते रहो, सुनते रहो और पढ़ते रहो,(ऐसा करने पर यह निश्चित है कि अनेक मुसीबतों से) पूर्णगुरू ने तुझे बचा लिया है रहाउ ऐ भाई! मालिक – प्रभु सत्यस्वरूप् है, उसका बडप्पन मापा नहीं जा सकता, वह भक्ति से प्रेम करनेवाला है, दया का स्त्रोत्र है, सन्तों की प्रतिष्ठा की रक्षा करता आया है और अपना यह विरद वह अदिमकाल से ही निभाता आ रहा है। हे भाई! परमात्मा का नाम आत्मिक जीवन देनेवाला है। यह आत्मिक खुराक सदा खाते रहो, प्रतिपल अपने मुह में डालते रहो। हे भाई! हमेशा गोविन्द का गुणगान करते रहो, न बुढापा आएगा, न मृत्यु आएगी और प्रत्येक दुख- क्लेश दूर हो जाएगा। हे भाई! ( नाम स्मरण करनेवाले) मनुष्य की प्रार्थना मेरे स्वामी ने सुन ली, (अब प्रभु-कृपा होने पर) उसके भीतर पूर्ण शक्ति पैदा हो जाती है। हे नानक! गुरू की यह महानता तमाम युगों में उजागर रहती है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh