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प्रगटयो खालसा परमातम की मौज

Voice of Soul
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कभी-कभी सोचता हूं कि कहीं मैं भी तो उसी जमात में शामिल नहीं जिनकी शख्सियत, जिनकी आत्मा उन तमाम बेकुसुरों के खून से रंगी हुई है। जो आज दौलत और शोहरत के उस मुकाम पर बैठे हुए हैं जिस तक पहुंचने के लिए लाखों-करोड़ों बेगुनाहों की लाषें, अनाथ बच्चों की पुकार, लाचार माताओं और बहनों की करूण चित्कार छिपी हुई है। जिसे देखने के लिए बस साफ आंख की जरूरत भर है। जिसे देखकर आपकी आंखों से आंसू जरूर निकलेंगे, जिसे रोक पाना फिर आपके भी बस में न होगा।
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सत्य की राह इतनी सरल नहीं जितनी की हमें प्रतीत होती है। हम सोचते हैं कि थोड़ा कुछ बोलकर, कुछ लिखकर या फिर किसी की कुछ आर्थिक सहायता करने मात्र से हम पाक-साफ हो जायेंगे। हमने तो किसी को हानि नहीं पहुंचाई। हम तो अपनी ओर से प्रत्येक स्तर पर उन लोगों की सहायता ही कर रहे हैं। उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं। हम तो गुरू साहिबानों के दिखाये रास्ते पर बिल्कुल सही प्रकार से चल रहे हैं। किरत कर हम हक-हलाल की कमाई कर रहे हैं। किसी को धोखा नहीं दे रहे हैं। अपना कार्य पूर्णतः ईमानदारी और मेहनत से कर रहे हैं। बस इतना ही काफी है। लेकिन यदि हम और हमारे जैसे अनेकों लोग गुरू के उपदेष मान रहे हैं तो फिर भी क्यों अब तक जालिम जुल्म करने के लिए बड़ी ही आसानी से वह समस्त साधन जुटा लेता है और उसके पष्चात् हमारे जैसे आंख के अंधों की आंखों के सामने जुल्म का वह नंगा नाच नचा देता है और हम न किस मुगालते में यह सोचकर जीते रहते हैं कि हम वाकई अपने गुरू की दिखाई राह पर चल रहे हैं क्योंकि हम हक हलाल की कमाई कर रहे हैं, अर्थात कीरत कर रहे हैं, बांट कर खा रहे हैं और कोई भी गलत कार्य नहीं कर रहे।
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यदि गुरू की राह पर चलने वाले इतनी अधिक संख्या में लोग मौजूद हैं और फिर भी जालिम का अस्तित्व बड़ी ही सरलता से बना हुआ है बजाय सच्चे लोगों की अपेक्षा। तो इसका अर्थ साफ ही तो है कि कहीं न कहीं हम अपनी कम बुद्धि के कारण गुरू द्वारा दर्षाये मार्ग को सही प्रकार से समझ ही न सके। कुछ पाखंडी संतों ने जिनकी प्रजाति मुख्य रूप से सर्वाधिक पंजाब में ही पाई जाती है, लोगों को अपने कुसत्संग द्वारा ऐसा भ्रमित कर दिया है कि आमजन लोगों की आंखों में सही और गलत की पहचान करना असंभव हो गया है। सिख गुरू साहिबानों के पाक उपदेषों को पाखंडियों ने ऐसे ढंग से प्रस्तुत किया कि जिसने आमजन के जीवन में अमृत बनना था, वह ऐसा हलाहल विष बन गया है जिसके कारण वह स्वयं सफेद पोषाक पहनकर काले शैतान की उपासक बने हुए हैं। जालिम का जुल्म रूकने के बजाय और अधिक बढ़ गये क्योंकि जब षिक्षा ही उल्टी थी तो फिर किस प्रकार दुष्ट का नाष होगा।
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सिख रिवायत के अनुसार खालसा के गुण इस प्रकार बताये गये है – खालसा ओह जो गरीबन को पाले, खालसा ओह जो दुष्टन को गाले….. इस प्रकार की अनेकोनेक षिक्षाएं और उपदेष जो गुरू ग्रंथ साहिब में और सिख इतिहास में बहुत ही स्पष्ट रूप से मिलती है।
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अनेकों पुरातन सिख खालसा जिनका जीवन यदि हम पढ़े और समझे तो हमें इतना तो जरूर समझ में आ जायेगा कि वह हर एक सिंघ खालसा जिन्होंने परमात्मा की इच्छानुसार वह तमाम कार्य किये और शहादत प्राप्त की, उनके जीवन की वह छोटी-छोटी बातें जो किसी किताब में नहीं मिलती। जिन्हें हमें अपनी साधारण बुद्धि से बिल्कुल साधारण रूप में उन सभी सिंघ शहीदों को बिल्कुल ही साधारण व्यक्ति समझ कर समझना होगा। तब हमें स्वयं ही समझ में आ जायेगा कि हम कहां कितने सहीं हैं और कितने गलत। उनके जीवन को, उनकी समझ को, उनके विष्वास को हमें अपने अन्दर उतारना होगा। फिर देखना हमें किसी भी बाहरी पाखंडी, ढोंगी बाबा की कभी आवष्यकता ही नहीं पड़ेगी। हमारी आंख के वह पर्दे हमारे हदय के शुद्ध होते ही स्वयं साफ हो जायेगे। तब हमें स्वयं ही समझ आ जायेगा कि कैसे शबद गुरू हो सकता है और किसी पाखंडी के दर पर अपनी नाक रगड़ने के बजाये हमें उस अकालपुरख परमात्मा की शरण में जाकर ही सच्ची शान्ति प्राप्त हो सकेगी जो अनादि काल से हमारे भीतर ही व्याप्त है।
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वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह।

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