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करामात क्या है……
एब बार गुरू गोविन्द सिंह जी बहादुर शाह के दरबार में गए तब वहां काजी ने गुरू साहेब से पूछा कि आपसे पहले हुए गुरू साहिबानों की अनेकों करामातें प्रसिद्ध है, क्या आपमें भी कोई करामात है? इसके जवाब में गुरू साहिब ने जो शबद उचारे वह आज के समय में प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रेरणादायक हैं। गुरू साहिब ने कहा पहली करामात तो बादषाह के अंदर है, उसकी आंख के एक आंसू के लिए सारा जगत उन्हें पूछने के लिए प्रस्तुत हो जाता है और वहीं दूसरी ओर बेइंतहां दुखों में डूबे गरीब की कोई बात भी नहीं पूछता। तब काजी बोला, यह तो ठीक है पर आपमें क्या करामात है? फिर गुरू साहिब ने एक सोने की मोहर निकाल कर कहा, दूसरी करामात इस धन में है। यह जिसके पास होती है सारा जहां उसके पीछे लग पड़ता है। उसकी हर अच्छी-बुरी बात को स्वीकारता है। यह सुनकर काजी चिढ़कर बोला – यह तो कोई बात न बनी, आप यह बतायें कि आपमें क्या करामात है? फिर गुरू साहेबान ने कृपाण निकालते हुए बोले तीसरी करामात इस कृपाण में है, अगर कहे तो दिखाउं। यह बात सुनकर काजी थर-थर कांपने लगा और कहने लगा आप तो मेरी बात का बुरा ही मान गए, मैं तो आपसे मजाक कर रहा था। फिर गुरू साहिबान कहने लगे कि अभी तो मैंने सिर्फ कारामात के बारे में बताया है, इसका प्रयोग नहीं किया और आप ऐसे ही मान गए। यह सारी बातें बादषाह के सामने हुई और वह बहुत शर्मिंदा हुआ और गुरू साहिब से माफी मांगते हुए काजी को कहा कि क्या यह किसी करामात की कम है कि गुरू साहिब के चार साहिबजादे शहीद हुए, अनेकों कुर्बानियां गुरू के प्यारे सिंघों ने दी तब भी उनकी आंखों से आंसू की एक बूंद न झलकी। पांच किले हार जाने के बाद भी उनके मुख पर मुस्कान थी क्या यह किसी कारामात से कम है?
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