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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है।
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यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर कभी किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी।
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लेकिन न जाने क्यों धर्म के विषय में लोग इस प्रकार की चुनौतियों को न समझकर आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ने लगते हैं। तलवारें खिच जाती हैं, गोलियां चल जाती हैं और असंख्य लाषें बिछ जाने के पष्चात भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही है या चित्रकार? वास्तव में दोनों ही सही हैं, मात्र उस दृष्टि और परिस्थिति में होकर देखने भर की देर है। अपने आप ही सब साफ हो जाता है कि गलत कोई और नहीं वास्तव में “मैं” ही तो सदा से गलत था। तभी तो अपने लिए तमाम दुःखों का इंतजाम मैंने खुद ही कर लिया…….
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