Menu
blogid : 15302 postid : 1317572

सिकन्दर अभी भी जिन्दा है

Voice of Soul
Voice of Soul
  • 69 Posts
  • 107 Comments

जी हां, हम उसी सिकन्दर की बात कर रहे हें जिसने कभी दुनियां पर अपनी विजय पताका फहराने की ठानी थी और अपने पूरे साजो-सामान के साथ दुनियां जीतने को निकल पड़ा था। आधी दुनियां जीत लेने के बाद जब उसने हिन्दुस्तान की धरती पर कदम रखा, उसके बाद तो जैसे वो यहीं का ही हो गया। इतिहास में सिकन्दर की जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी प्रमाण मिलते हैं किन्तु कई ऐसे भी तथ्य हैं जिनके विषय में इतिहास से कुछ नहीं मिलता। वहां पर हमें बड़ी तत्परता के साथ उन पारखी नजरों से देखने की आवष्यकता होती है जिससे वह भी देखा जा सकता है जिनके विषय में इतिहासविज्ञ मौन हैं।
.
भारत में हजारों वर्षों की गुलामी के पश्चात जब बहुत बड़े संघर्ष के साथ आजादी मिली। तब यहां के जनता ने सोचा कि अब अपने गुलामी की दिन गये और आजादी के वह सुनहरे पल पुनः लौट आये जब कभी देष सोने की चिड़िया हुआ करता था और दूध दही की नदियां बहा करती थी। देष में अमन, शांति और प्रेमपूर्ण माहौल होता था। तब लोगों को यह तनिक भी ज्ञान न था कि सिकन्दर अभी तक मरा नहीं, वह अभी भी जीवित है। जो समय-समय पर अपनी आमद की सूचना बड़े जोर शोर से देता रहता है। परन्तु गुलामी के कारण आ चुकी भीरूता का क्या? सदैव किसी न किसी के पीछे चलने वाली यहां की जनता का क्या? जो सदा सर्वदा किसी पषु की भांति किसी न किसी चरवाहे को ढूंढती रहती है। फिर वह चरवाहा चाहे कैसा भी क्यों न हो, अच्छा या बुरा। इससे क्या प्रभाव पड़ता है। प्रभाव पड़ता है मात्र उस आदत का, जिसके कारण आजादी के 68 साल भी हम किसी गुलाम से कमतर नहीं। मात्र समय और प्रकार का ही अंतर है कि हम इस समय किस प्रकार गुलाम से हैं।
.
कोई समय होता था जब एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप से खरीद-बेचकर गुलाम बनाया करता था। जिससे वह किसी पषु की भांति किसी भी प्रकार से कार्य लेने हेतु स्वतन्त्र था। गुलाम व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार का कोई विरोध का कोई प्रष्न ही नहीं उठता। उसे मात्र अपने स्वामी द्वारा दिये गये कार्य को तत्परता के साथ पूर्ण करना था फिर चाहे वह किसी भी प्रकार का क्यों न हो। स्वयं की इच्छा, आवष्यकता और जीवन के बारे में उसकी अपनी कोई सोच न थी। जो पूर्ण रूप से अपने स्वामी की एक ऐसी चलती फिरती मषीन था जिसे वह जब चाहे जैसे भी प्रयोग कर सकता था। फिर जैसे-जैसे समय में परिवर्तन आया मनुष्य ने मनुष्य को गुलाम बनाने की प्रक्रिया में भी परिवर्तन किया क्योंकि समय के साथ-साथ अब उन लोगों की सोच में कुछ परिवर्तन आये। अब वह भी अपने और अपने से जुड़े अन्य लोगों के बारे में सोच रखने लगे। पूरी दुनियां एक परिवार के समान हो गई। जहां कभी कोई छोटी सी सूचना वर्षों में पहुंच पाती थी, अब मात्र कुछ सेकेण्ड में पहुंचने लगी। टीवी, रेडिया, टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट अनेकों संचार के साथ उपलब्ध होने के कारण मानव ने बड़ी तेजी के अनेकों क्षेत्रों में विकास कर लिया। लेकिन यह विकास मात्र अर्थव्यवस्था, जीवनषैली और मात्र ऐसी षिक्षा तक ही सीमित हो गया। जिससे कोई व्यक्ति बहुत धन कमा तो अवष्य सकता है लेकिन उसकी वही भीड़ के साथ किसी चरवाहे या किसी सेनापति के पीछे-पीछे चलने वाली सोच से मुक्त नहीं करता।
.
मैकाले द्वारा नियोजित षिक्षा पद्वति जो ब्रिटिष सरकार के जानेमाने नेता थे। उन्होंने एक ऐसी षिक्षा व्यवस्था का उदय किया जिससे यहां की जनता में भविष्य में किसी भी प्रकार से ऐसी सोच से मुक्त होने का कोई उपाय न रह जाये जिससे वह भी किसी स्वतन्त्र सोच एवं व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बन अपनी स्वतन्त्रता के विषय में सोचना प्रारम्भ कर दें। उन्होंने बड़ी ही कुषलता के साथ ऐसी षिक्षा व्यवस्था को प्रचलित कर दिया जिससे व्यक्ति किसी मषीन की भांति किसी वस्तु को निर्माण तो कर सकता है किन्तु किसी नवीन अविष्कार हेतु उसके पास कोई ज्ञान एवं समय न होने के कारण वह सदा असफल हो अपने स्वामी की ओर निर्भर रहे जिससे उसे समय के साथ अग्रसर होने हेतु सब किसी भी मूल्य में क्रय करना पड़े। जिसका नतीजा आर्थिक गुलामी। आर्थिक गुलामी जो सापेक्ष गुलामी से भी अधिक भयावह है। जिसमें व्यक्ति तड़प तो सकता है किन्तु कभी यह नहीं कह सकता कि वह स्वतन्त्र नहीं। बिना बेड़ियों में बांधे किसी को कैसे बंधक बनाया जाये, इसका पूर्ण इंतजाम ब्रिटिषर्स कर गये। लेकिन हाय हमारी जनता के वह रहनुमा, जिन्होंने अभी तक यहां की जनता को इन बंधनों से मुक्त करने का कोई उपाय न खोजा। अरे खोजे भी क्यों? इस पद्वति के कारण ही तो जनता अभी भी गुलाम है और भविष्य में भी रहने वाली है। जिन्हें ज्ञान है वह इस पद्वति से बाहर निकल अपने बच्चों को विदेषों में भेज एक आजाद सोच वाला व्यक्ति बना यहां पर पुनः यहां की जनता हेतु एक नया सेनापति भेज देते हैं। जो निकट भविष्य के नये सिकन्दर ही तो हैं….!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh